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सैकड़ों नदियों को पीकर कश्तियाँ तक खा गए

सैकड़ों नदियों को पीकर कश्तियाँ तक खा गए,
गाँव गलियां सब पचाकर बस्तियां तक खा गए,
वो वतन कि भूख को कैसे मिटायेंगे भला,
जो शहीदों कि चिताओं की अस्थियाँ तक खा गए!!

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