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पत्ता भी हिलता है तो उसी के हुकम से

पत्ता भी हिलता है तो , उसी के हुकम से …………..

अधिकार है हमारा , खुद ही के कर्म से , …………..

मिलता है फल तेरे ही कर्म की नियत से …………

आदमी जीता अपने – २ विकारों से…………..

घटनाएं घटती है , हुकमें मंजूरे खुदा से …………..

चाँद – तारे भी तू ही उगा रहा है ………….

रोशन है ये जहां हमारा ,…………

होता सब कुछ तेरे ही रहमों कर्म से ………….

है सत्तापति एक ही , जो पूरा ब्रह्माण्ड चलारहा है …………

सिर्फ तेरा ही घर नहीं ,…………

वो तो जीव – जंतु सभी को चला रहा है ……………….

देता है वो जिसे भी सत्ता , ……………

मिलती सत्ता उसे उसी के हुकम से ……………..

रखना याद इतना , है ये सत्ता उसी की ,………….

तू भी जीता है उसी के रजा से…………….

दुरूपयोग होता जब भी सत्ता का , ………….

गिरता फिर वापस तू उसी के हुकम से………………..

संत की तपस्या भंग हो तो वो राजा होजाता है ……………

पर जब भी राजा की तपस्या भंग हो , ………..

पुनः लोटता नरक , अपने ही कर्म से ………….

पत्ता भी हिलता है तो , उसी के हुकम से ………………….

अधिकार है हमारा , खुद ही के कर्म से ,…………

मिलता है फल तेरे ही कर्म की नियत से …………………….

- राजकुमार खन्ना

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